पिछड़े वर्ग के महापुरुषों द्वारा शुरू की गयी साझी लड़ाई को केवल अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति की लड़ाई समझना ही है पिछड़े वर्ग के समस्याओं का मूल कारण – बिन्दु बाला बिन्द
पिछड़े वर्ग को यह लगता है कि ब्राह्मणवाद के विरोध की लड़ाई अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति की लड़ाई है । इस सोच ने पिछड़े वर्ग का सबसे ज्यादा नुकसान किया है क्योंकि पिछड़े वर्ग को अपने महापुरुषों के वास्तविक इतिहास को दूर रखा गया है और हमारे पुरखों के साहित्य को षड्यंत्र पूर्वक दलित साहित्य और हमारे पूर्वजो को अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति का महापुरुष घोषित किया गया है इसलिए जब हम बहुजन, मूलनिवासी की बात करते हैं तो पिछड़े वर्ग को यह लगता है कि यह तो अनुसूचित जाति/अनुसूचित जन जातियों की लड़ाई है लेकिन जब हम इतिहास का अध्यन करते हैं तो पता चलता है कि प्राचीन भारत में ब्राह्मणवाद के विरोध में सबसे बड़ी लड़ाई तथागत महामानव बुद्ध ने लड़ी और बहुजन संकल्पना तथागत बुद्ध ने दिया और इसकी वजह से मौर्य साम्राज्य स्थापित हुआ। आधुनिक भारत में इस लड़ाई को राष्ट्रपिता ज्योति राव फुले ने किया । यह मूलनिवासी संकल्पना ज्योतिबा फुले की है क्योंकि उन्होंने लिखा है कि आर्य इरानी है । ज्योतिबा फुले ने जो बात कही छत्रपति शाहू महाराज ने उसे अपने राज्य में लागू किया और बाबा साहब डॉ. अम्बेडकर ने उसे भारतीय संविधान में लिखा।
प्राचीन भारत में ब्राह्मणवाद को समाप्त करने का कार्य तथागत बुद्ध और सम्राट अशोक ने किया, मध्यकालीन भारत में संत तुकाराम, छत्रपति शिवाजी, महाराज, गुरु गोविंद सिंह, संत रविदास, संत कबीर सहित तमाम संतो महापुरुषों ने इसके विरोध में लड़ाई लड़ी, आधुनिक भारत में ज्योतिबा फुले और छत्रपति शाहू महाराज की लड़ाई की वजह से बाबा साहब डॉ. अम्बेडकर ने ब्राह्मणवाद को समाप्त कर भारतीय संविधान लागू किया । इसी आन्दोलन को पेरियार रामास्वामी नायकर, संत गाडगे, डॉ. रामस्वरूप वर्मा, कर्पूरी ठाकुर, जगदेव बाबू कुशवाहा, पेरियार लल्ई सिंह यादव और मान्यवर दीना भाना, डी. के. खापर्डे और काशीराम जी ने लड़ने का कार्य किया इसलिए मै समस्त बहुजन समाज को बताना चाहती हूँ कि यह लड़ाई केवल अनुसूचित जाति/ अनुसूचित जनजाति की नहीं है बल्कि यह लड़ाई ओबीसी के महापुरुषों द्वारा शुरू की गयी साझी लड़ाई है ।
हमारे महापुरुषों ने ब्राह्मणवादी व्यवस्था के विरोध में मिज-जुल कर साझी लड़ाई लड़ी, जब ज्योतिबा फुले को जरूरत पड़ी तो फातिमा शेख, उस्मान सेख ने ज्योतिबा फुले को मदद किया, जब बाबा साहब को जरूरत पड़ी तो छत्रपति शाहू महाराज ने उनकी मदद की और गोल मेज सम्मेलन में मुसलमानों ने बाबा साहब का साथ दिया और संविधान सभा में भेजने का कार्य किया और बाबा साहब को जब संविधान लिखने का मौका मिला तो सभी एससी, एसटी, ओबीसी और अल्पसंख्यकों के लिए हक व अधिकार लिख डाले।
आज इस साझी लड़ाई को भूलकर हम ब्राह्मणों द्वारा लगाये आपसी झगड़े में फँस गये हैं जिसकी वजह से हम सभी की समस्याएं बढ़ गयी है और ब्राह्मणो का अनियंत्रित कब्जा लोकतंत्र पर हो चुका है इसलिए आप हम सबको इस साझी लड़ाई को मील-जुलकर ही लड़ने से सफलता मिलेगी ।
बिन्दु बाला बिन्द
गाजीपुर सदर विधान सभा