दलितों पिछडो के आरक्षण समाप्ति का सपना कोर्ट के सहारे पूरा करेगी भाजपा और संघ – बिन्दु बाला बिन्द Bindu Bala Bind
लखनऊ: गाजीपुर की सपा नेत्री बिन्दु बाला बिन्द ने कहा कि माननीय सुप्रीम कोर्ट ने 28-जनवरी 2022 को केंद्र सरकार के अनुरोध पर केंद्र और राज्यों को आरक्षण की समीक्षा का दिया बड़ा आदेश दिया है । एससी, एसटी और ओबीसी को नियुक्ति और पदोन्नति में आरक्षण संविधान के आर्टिकल 16(4) से मिला है सावधान क्योंकि पदोन्नति ही नही, नियुक्ति के आरक्षण की भी पीरियोडिक समीक्षा के नाम पर होगी समाप्ति ।
भाजपा और आरएसएस संविधान से आरक्षण के चैप्टर को पूर्ण रूप से डिलीट करना चाहती है जिसकी शुरुआत अटल बिहारी वाजपेई की सरकार में संविधान समीक्षा आयोग का गठन करके हुई थी, परंतु तत्कालीन राष्ट्रपति श्रद्धेय के आर नारायण साहब के प्रबल विरोध और राज्य सभा में बीजेपी का बहुमत नहीं होने के कारण बीजेपी अपने मंसूबे में कामयाब नहीं हो सकी थी । संविधान की समीक्षा के नाम पर एससी, एसटी, ओबीसी के आरक्षण को समाप्त करना इनके मुख्य एजेंडे में है, परंतु जब सरकार जन दबाब और बार बार चुनाव के चलते इस कार्य को करने में सफल नही हो सकी है इसलिए अब पिछले दरवाजे से केंद्र सरकार ने कोर्ट का रास्ता चुना है । पदोन्नति आरक्षण के मामले सुप्रीम कोर्ट में चल रहे वाद में केंद्र सरकार ने आरक्षण की पीरियोडिक समीक्षा की मांग कर ली और अनुसूचित जाति की पैरोकारी कर रही एक सीनियर अधिवक्ता इंदिरा जयसिंह ने भी केंद्र सरकार की हां में हां मिला कर कोर्ट को गुमराह कर दिया है । सुप्रीम कोर्ट ने पदोन्नति आरक्षण की पिरियोडिक समीक्षा (निश्चित समय अंतराल) के बाद पदोन्नती आरक्षण की समीक्षा करने का कानून बनाने का आदेश पारित कर दिया, हालांकि सुप्रीम कोर्ट उन्हीं क्षेत्रों में कानून बनाने का आदेश सरकार को दे सकता है । जहां व्यापक जनहित हो और उस विषय पर कोई कानून संविधान में मौजूद न हो, नियुक्ति और पदोन्नति के आरक्षण के मामले में संविधान में मौलिक अधिकारों के रूप में आर्टिकल-14, 15, 16 , 16 (4 ), 16 (4A ),16 (4B) और आर्टिकल 335 स्पष्ट कानून मौजूद है । मौलिक अधिकारों में कटौती या उनकी समाप्ति आर्टिकल-13 के अनुसार सुप्रीम कोर्ट नही कर सकती है ।
बिन्दु बाला बिन्द ने आगे कहा कि समीक्षा सिर्फ़ पदोन्नति आरक्षण की नहीं बल्कि पूरे आरक्षण की होगी । संविधान के आर्टिकल-16(4) के अनुसार नियुक्तियों और पदोन्नति में आरक्षण एक ही आर्टिकल से मिलता है और यदि पदोन्नति के आरक्षण की समीक्षा के लिए कानून बनता है तो पदोन्नति के साथ नियुक्तियों का आरक्षण भी संवैधानिक रूप से उसके दायरे में ऑटोमैटिक आ जायेगा, पदोन्नति आरक्षण उत्तर प्रदेश, उत्तरांचल, हिमाचल प्रदेश, बिहार सहित अधिकांश राज्यों में पहले ही समाप्त हो चुका था और जिन छोटे-मोटे राज्यों में पदोन्नति का आरक्षण मिल भी रहा है, वह कार्डर वाइज आंकड़ों की अनिवार्यता के चलते वेंटीलेटर पर पहुंच चुका है, जिसे एक झटके में खत्म किया जा सकता है । वर्तमान समय में हमे यह समझना पड़ेगा कि अन्यायवादी प्रिविलेज जाति द्वारा सुप्रीम कोर्ट में जो लड़ाई लड़ी जा रही है, वह पदोन्नति के आरक्षण की आड़ में नियुक्ति के आरक्षण को समाप्त कराने की है, जिसमे भाजपा की केंद्र व राज्य सरकारें भी पूर्ण रूप से संलिप्त है । सुप्रीम कोर्ट के आदेश देने के बावजूद उत्तर प्रदेश और उत्तरांचल राज्यों की भाजपा सरकारो ने सुप्रीम कोर्ट में अपना पक्ष नहीं रखा और केंद्र सरकार ने अपने द्वारा पारित संविधान संशोधनों के विरुद्ध सुप्रीम कोर्ट में जो मुद्दे तय करने के लिए रखे है, उन पर सुप्रीम कोर्ट ने मुहर लगा दी है, हालांकि केंद्र सरकार निजीकरण कर आरक्षण को लगभग समाप्त कर चुकी है, परंतु थोड़े- बहुत पद जो बचे हैं, वह आरक्षण की समीक्षा के नाम पर समाप्त कर दिए जाएंगे, आप दलित पिछड़े समुदाय के लोग बस ऐसे ही मुंह बन्द करके भाजपा का गुलाम बनकर देखते रहे ।
गाजीपुर की बिन्दु बाला बिन्द ने आगे कहा कि जब दलित पिछड़े समाज में जागृति आनी शुरू होगी तब सत्ता के सभी स्तंभ, कार्यपालिका , विधायिका, न्यायपालिका और मीडिया एकजुट होकर आपको रोकना चाहेंगे । आज देश की बिकाऊ मीडिया की हालत देखकर यह सत प्रतिशत साबित हो रही है कि देश की बिकाऊ मीडिया भाजपा व आरएसएस की गुलामी कर रही है इसलिए एससी एसटी के साथ ओबीसी भी धीरे- धीरे भाजपा को सत्ता से बेदखल करने की दिशा में चल पड़े हैं क्योंकि केंद्र और राज्य में जिस पार्टी की सत्ता हो उस पार्टी के विधायक, सांसद और मंत्रियों को गांव में प्रचार करना तो दूर उन्हे ओबीसी लोगों द्वारा खदेड़ा जा रहा है, जो कानूनी रूप से गलत जरूर है, लेकिन इसका मतलब समझने की है, संविधान विरोधी होने के कारण बीजेपी नेता जनता के गुस्से का शिकार हो रहे हैं । अब संविधान बचाने की बड़ी जिम्मेदारी एससी, एसटी व ओबीसी के लोगों की है । संविधान लागू होने के बाद आपकी स्थिति जो थोड़ी बहुत मजबूत हुई है, उसमें सरकारी सेवाओं में आपकी भागीदारी का बहुत बड़ा योगदान है । सरकारी सेवा में आपका प्रतिनिधित्व एससी एसटी ओबीसी के लिए ऑक्सीजन की तरह है । यदि प्रतिनिधित्व वाली ऑक्सीजन भाजपा हटा लेती है तो हमारा जीना मुश्किल है । संविधान हित, राष्ट्रहित में एससी एसटी ओबीसी और इन्साफ पसंद लोकतंत्र समर्थक भाइयों से अपील है कि जाति धर्म से ऊपर उठकर भाजपा को सत्ता से बेदखल करने के लिए वोट की चोट देने की कृपा करें और समाजवादी पार्टी की सरकार बनाने के लिए माननीय भैया अखिलेश यादव जी को सूबे का मुख्यमंत्री बनाये ताकि संविधान की रक्षा के साथ ही साथ प्रदेश का चौमुखी विकास हो सकें । 10-मार्च ….. आ रहे है अखिलेश !