अजब गजब है, हिंजड़ों और तितलियों की गिनती होती है, पर पिछडों कि गिनती से परहेज – बिन्दु बाला बिन्द

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अजब गजब है, हिंजड़ों और तितलियों की गिनती होती है, पर पिछडों कि गिनती से परहेज – बिन्दु बाला बिन्द

लखनऊ – गाजीपुर की सपा नेत्री बिन्दु बाला बिन्द ने कहा कि इस देश में कुत्ते, बिल्ली, गधे, घोड़े, खच्चर, कछुआ, मगरमच्छ, घड़ियाल, डॉल्फिन आदि की गणना सरकार करती है। अब तितलियों की गणना कराने जा रही है। यहां तक कि हिंजड़ों की गिनती होती है। मगर पिछड़ों की गिनती नहीं होती है। अगर पिछडों कि गिनती हो जाएगी तो पता चल जाएगा कि पिछडों कि जनसंख्या कितनी है? उनका प्रतिनिधित्व कितना है? पिछड़े अपने ही देश में कितने पिछड़े हैं?सरकार तितलियों की गिनती कराने जा रही है, पर पिछड़ों की गिनती कराने का वादा करने के बाद भी असमर्थता जता कर मुकर गयी।

उन्होंने बताया कि देश मे ब्रिटिश सरकार ने 1881 में जातिगत जनगणना शुरू किया। अंतिम बार 1931 में जातिगत जनगणना कराई गई। आजादी के बाद 1951 से शुरू जनगणना में एससी, एसटी की हर दशक में गणना होती आ रही है, पर ओबीसी की जनगणना कराना उचित नहीं समझा गया।
बिन्दु बाला बिन्द ने बताया कि 1931 में देश में पिछडों की जनसंख्या 52.10% थी। एससी, एसटी की तरह ओबीसी की जनगणना कराई जाती तो पता चल जाता कि पिछडों कि वास्तविक जनसंख्या क्या है ? पिछडों के पास कितनी जमीन, कितनी फैक्ट्री, कितनी नौकरियां, कितना देश कि सम्पत्ति पर कब्जा है, गिनने से पता चल जाएगा। पिछड़े वर्ग की हालत तो एससी, एसटी से भी बदतर है। जब एससी, एसटी को संवैधानिक सीमा के अनुसार जनसंख्या के अनुपातानुसार 22.5% कोटा कार्यपालिका व विधायिका में भारत सरकार अधिनियम-1935 व 1937 के आधार पर उसी समय से दिया जा रहा है तो 52% पिछडों का आजादी के बाद से हिस्सा कौन खा रहा है।
बिन्दु बाला बिन्द ने बताया कि मुसलमानों का शासन प्रशासन में गुलाम भारत में प्रतिनिधित्व 35% था और वर्तमान में महज 2 से 2.5% है यानि कि मुसलमानों को लोकतंत्र में जनसंख्या के अनुपात में भागीदारी मात्र 2- 2.5% ही है, तो 52% ओबीसी का 70 सालों में हकमारी किसने की ? यह जब ओबीसी की डोर टू डोर गिनती होगी तो पता चल जाएगा कि उसके पास अब क्या बचा है? ओबीसी को नौकरियां में भागीदारी आर्टिकल- 340 के अनुसार संविधान लागू होते ही मिलनी चाहिए थी, पर वह भी आजादी के 47 साल बाद जनसंख्या का आधा यानि 27 फीसदी ही मिला।उसमें भी संविधान के विरोध में जाकर षड्यंत्र करके क्रीमीलेयर की बाध्यता के साथ दिया गया जो ओबीसी अपने बच्चों को पढ़ा- लिखा सकता है उसके बच्चे कौ नौकरी व आरक्षण का लाभ नहीं और जो पढ़ा नहीं सकता उसके बच्चे को आरक्षण, इसका यह मतलब हुआ कि जिसके मुंह मे दांत है उसको चने नहीं और जिसके दांत नहीं है उसको चने देना। ना दांत वाला खा सका और बिना दांत वाला देखता रहा। इसका परिणाम यह हुआ कि आज शासन-प्रशासन में ओबीसी को समुचित भागीदारी नहीं मिल पाई है।
बिन्दु बाला बिन्द ने कहा कि 1990 में ओबीसी के लिए मंडल कमीशन लागू हुआ तो उसका विरोध किसने किया ?
क्या एससी, एसटी या मुसलमानों ने किया ? नहीं तो मुसलमान पिछड़ों का दुश्मन कैसे? भाजपा सरकार आरएसएस के इशारे पर संविधान के विरोध में जाकर देश की संवैधानिक संस्थाओं, शिक्षा, चिकित्सा, भारत की सम्पत्ति व सरकारी उपक्रमों का निजीकरण करके मनुवाद, सामंतवाद व पूँजीवाद को बढ़ावा दिया जा रहा है।

उन्होंने कास्ट सेन्सस की माँग करते हुए कहा कि जब जाति आधारित जनगणना होगी तो सब साफ साफ आंकड़े में आ जाएगा। पिछडों के नेता हिंजडे बनकर पिछडों कि गिनती के मुद्दे पर चुप हैं। क्या वह पिछडों के असली प्रतिनिधि हैं? लोकसभा में 120 ओबीसी सांसद हैं पर ओबीसी के मुद्दे पर इनमें कोई तालमेल नहीं। एससी, एसटी के अधिकारों पर कोई सरकार छेड़खानी नहीं कर सकती क्योंकि वे एससी, एसटी एमपीज फोरम बनाकर एकजुट हैं, पर ओबीसी सांसद दलीय आधार पर बंटे हैं, उनका ओबीसी एमपीजी फोरम नहीं। ओबीसी के सांसद व अन्य जनप्रतिनिधि निजस्वार्थ में गूँगे बहरे बने हुए हैं।

बिन्दु बाला बिन्द