एससी, एसटी को विधायिका में आरक्षण है तो ओबीसी को क्यों नहीं- बिन्दुबाला बिन्द

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Bindu Bala Bind

एससी, एसटी को विधायिका में आरक्षण है तो ओबीसी को क्यों नहीं- बिन्दुबाला बिन्द

ओबीसी सांसद ओबीसी एमपीज फोरम बनाकर जातिगत जनगणना व समानुपातिक हिस्सेदारी का मुद्दा उठाएं – बिन्दु बाला बिन्द Bindu Bala Bind

लखनऊ : भारतीय संसद के 543 लोकसभा सांसदों में हिन्दू सवर्ण सांसदों की संख्या 232 (42.7%), ओबीसी 120 (22.9%), एससी 84 (15.8%) व एसटी 47 (9.5%) हैं। गाजीपुर की सपा नेत्री बिन्दु बाला बिन्द ने बताया कि संविधान के अनुच्छेद-330 व 332 के अनुसार अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति को विधायिका (लोकसभा व विधानसभा) में प्रतिनिधित्व के लिए समानुपातिक आरक्षण कोटा के तहत सीटें आरक्षित हैं। उन्होंने कहा कि सबसे बड़ी ओबीसी के लिए विधायिका में आरक्षण न होने से OBC का विधानसभाओं व लोकसभा में समुचित प्रतिनिधित्व नहीं है। उन्होंने कहा कि अनुसूचित जातियों व अनुसूचित जनजातियों के हितों की सामूहिक लड़ाई के लिए एससी, एसटी के सांसदों ने दलीय भावना से ऊपर उठकर एससी-एसटी एमपीज फोरम बनाये हैं लेकिन ओबीसी के सांसद दलीय मोह व भय से मुक्त न हो चुप्पी साधे रहते हैं।

उन्होंने ओबीसी के सांसदों से दलीय भावना से ऊपर उठकर विधायिका व कार्यपालिका के साथ अन्य क्षेत्रों में समानुपातिक प्रतिनिधित्व के लिए ओबीसी एमपीज फोरम बनाकर आवाज़ उठाने का आह्वान किया है ।
बिन्दु बाला बिन्द ने कहा है कि संविधान में नया अनुच्छेद 330 (क) तथा 332 (क) शामिल किए बिना ओबीसी को उनका अधिकार नहीं मिलने वाला है। आगे कहा कि 2019 में सम्पन हुए लोकसभा चुनाव में ओबीसी सांसदों की हिस्सेदारी 120 के साथ महज 22.9 फीसदी ही है। उत्तर प्रदेश की विधानसभा में इस बार 151 ओबीसी विधायक निर्वाचित हुए हैं, पर ओबीसी की की जा रही हकमारी व संवैधानिक हितों की डकैती पर चुप्पी साधे हुए हैं। निजस्वार्थ में ओबीसी के सांसद, विधायक दलीय गुलामी में बंधकर वर्गीय हित को नजरअंदाज करते आ रहे हैं।

बिन्दु बाला बिन्द का कहना है कि देश में 3,743 जातियां ओबीसी के तहत आती हैं। इनमें से 2 हज़ार से ज़्यादा ऐसी हैं, जिन्हें संसद में आज तक हिस्सेदारी नहीं मिली। हालांकि जातीय आधार पर जनगणना के आंकड़े सामने नहीं आए हैं लेकिन इस बात से किसी को इंकार नहीं है कि देश की आबादी में ओबीसी की तादाद 52% फीसदी से ज़्यादा है। मंडल आयोग ने अपनी रिपोर्ट में इसे क़रीब 52.10 फीसदी माना था। इसके बावजूद ओबीसी को आरक्षण में हिस्सेदारी महज़ 27 फीसदी ही मिला है जो संवैधानिक व नैसर्गिक न्याय के प्रतिकूल है। उस पर भी क्रीमी लेयर जैसी तमाम शर्तें लागू की गई हैं। अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के लिए भारत के संविधान के अनुच्छेद 15(4), 16(4), 340 का पालन नहीं हो रहा है। मंडल आयोग की सभी सिफारिश लागू न कर अभी तक मात्र 2 सिफारिशें ही आधी अधूरी पूरी हो पाई हैं। उन्होंने कहा कि ओबीसी की जनगणना करवाया जाना आवश्यक है। जब हर सेन्सस में एससी, एसटी की जनगणना के साथ धार्मिक अल्पसंख्यक वर्ग की जनगणना कराई जाती है तो ओबीसी की जनगणना क्यों नहीं ? गुलाम देश में ओबीसी की जनगणना हो सकती है तो आजाद देश में क्यों नही ? जनगणना के प्रारूप पत्र में ओबीसी की जनगणना के लिए 13 नंबर कॉलम क्यों नहीं है ? गुलाम देश में 1931 में 2399 जातियां शामिल थी और उस समय ओबीसी की जनसंख्या 52% थी। स्वतंत्रता के बाद पाकिस्तान, बगलादेश अलग हो गया है और वर्तमान में ओबीसी की 3743 जातियां हैं।
बिन्दु बाला बिन्द ने कहा कि ओबीसी का प्रधानमंत्री, 28 मंत्री, दर्जनों मुख्यमंत्री और 120 सांसद होने के बाद भी ओबीसी की जनगणना नहीं हो रही और जनसंख्या के अनुपात में अब तक हिस्सेदारी/भागीदारी नहीं मिली है। देश का प्रधानमंत्री,  उपराष्ट्रपति ओबीसी, राष्ट्रपति एससी फिर भी ओबीसी को न्याय नहीं मिल रहा है ।
आखिर ओबीसी से इतनी नफरत क्यों है? जब संविधान की अनुसूची-3 की शपथ ली जाती हैं तो संविधान का अनुपालन पालन क्यों नहीं किया जाता है ?
बिन्दु बाला बिन्द Bindu Bala Bind