#बुद्ध_और_उनका_धम्म ही दुनिया को बचायेगा – बिन्दु बाला बिन्द गाजीपुर।
गाजीपुर: सपा नेत्री बिन्दु बाला बिन्द ने कहा कि बुद्ध आध्यात्मिक क्रांति के साथ साथ सामाजिक क्रांति के भी प्रेरणा स्रोत हैं । आर्य ब्राह्मणों की विषमतावादी विचारधारा जो असत्य, हिंसा, नफरत और विषमता पर टिकी हुई थी । जिसे स्थापित करने के लिए ब्राह्मणों ने वैदिक युग में स्वर्ग नरक की ईश्वरीय काल्पनिक दुनिया के माध्यम से लोगों को स्वर्ग का लालच और नर्क का डर दिखाकर अपने नियंत्रण में कर लिया था । ब्राह्मणों के कर्मकांड पाखण्ड अंधविश्वास में उलझकर वैदिक युग में पशुबलि, नरबलि, स्त्री शोषण जैसी कुप्रथाएं चरम पर थी । ‘समय से पहले और भाग्य से ज्यादा’ की धारणा ने इंसान को एक दम नालायक बना दिया था । ‘जगत मिथ्या, भ्रम सत्य’ के नाम पर चारो तरफ अंधकार ही अंधकार छाया हुआ था । मानवता पीड़ित और शोषित थी ।
ऐसे अंधेरे युग में वैशाख पूर्णिमा के दिन 563 ईपू. सिद्धार्थ गौतम बुद्ध का जन्म हुआ । तात्कालिक परिस्थितियों को देखकर वे दुःखी हो गए। इन दुःखों के कारण ढूंढने के लिए उन्होंने गृह त्याग दिया। कठोर साधना के बाद उन्हें ज्ञान प्राप्त हुआ । ज्ञान प्राप्ति के बाद वे बुद्ध कहलाये । जो उन्होंने जीवन जीने का मार्ग बताया वह धम्म कहलाया । धम्म के मार्ग पर चलने वाले भिक्षु और उपासकों का बंधन संघ कहलाया अर्थात पूरा बुद्ध धर्म त्रिरत्न बुद्ध धम्म संघ में सिमटा हुआ है, जो सत्य अहिंसा प्रेम और समानता का संदेश है ।
बुद्ध को यदि हम सामाजिक क्रांति के आंदोलन की दृष्टि से समझना चाहें तो बुद्ध ने तीन बातों पर ध्यान दिया पहला प्रचलित असत्य दर्शन के खिलाफ सत्य दर्शन खोजा ताकि जिसके माध्यम से लोगों को ‘अत्त दीपो भव’ यानी आत्मनिर्भर बनाया जा सके, दूसरा इस दर्शन को व्यवहारिक रूप देने के लिए बहुजन और अल्पजन के रूप में सामाजिक वर्गीकरण किया, तीसरा संघ की स्थापना कर एक प्रशासनिक तरीके से अपने मिशन को चलाया । इन तीनो बातों को विस्तार से निम्न प्रकार समझा जा सकता है ।
1. बुद्ध का सत्य दर्शन
अत्त द्वपो भव’ अर्थात आत्मनिर्भर बनो । यह बुद्ध का अमर सन्देश है । बुद्ध ने देखा कि लोग आत्मनिर्भर न होकर अपनी अज्ञानता के कारण काल्पनिक ईश्वर की कृपा पर निर्भर हैं। ईश्वर के बिचौलिए स्वर्ग का लालच और नर्क का डर दिखाकर अज्ञानी लोगों का शोषण कर रहे हैं।
#चार_आर्य_सत्य
बुद्ध कहते हैं दुनिया में दुःख है अर्थात राग और द्वेष या सुखद और दुखद वेदना है, दुःख का कारण है अर्थात बुद्ध अपने अनुभव के आधार पर कहते हैं कि वेदनाएं दुःख का कारण है । जिनका स्वभाव अनित्य, नश्वर, क्षणभंगुर हैं । अतः वेदनाओं के प्रति तटस्थ रहना ही दुःख का निवारण है और वेदनाओं के प्रति तटस्थ रहने का तरीका अर्थात अष्टांगिक मार्ग दुःख निवारण का मार्ग है लेकिन यहाँ बुद्ध कहते हैं कि मै आपको दुःख मुक्त नही कर सकता क्योंकि मै केवल मार्ग दाता हूँ । मै अपने अनुभव के आधार पर केवल आपको मार्ग बता सकता हूँ, चलना आपको ही पड़ेगा । इस तरह चार आर्य सत्य एक विज्ञान का सूत्र है जो कारण को परिणाम से जोड़कर वास्तविकता को सिद्ध करता है ।
आर्य अष्टांगिक मार्ग
बुद्ध का आर्य अष्टांगिक मार्ग दुःख निवारण का मार्ग है । जो मंझिम निकाय या ‘मध्यम मार्ग’ कहलाता है । ‘प्रज्ञा शील समाधी’ आर्य अष्टांगिक मार्ग की तीन श्रेणियां हैं।
#प्रज्ञा
सम्यक दृष्टि और सम्यक संकल्प का मतलब स्वतंत्र सकारात्म सोच या अत्त द्वीप भवः या सम्यक प्रज्ञा से है । सम्यक प्रज्ञा तभी होगी जब शील का पालन किया जाएगा ।
#शील
सम्यक वचन, सम्यक कर्म और सम्यक आजीविका का मतलब सकारात्मक व्यवहार या सम्यक शील से है।
#समाधि
सम्यक व्यायाम, सम्यक स्मृति और सम्यक समाधि का मतलब है साकारात्मक मन की एकाग्रता या सम्यक समाधि । शील का पालन से ही सम्यक समाधि सम्भव है ।
अर्थात सम्यक प्रज्ञा और सम्यक समाधि दोनों अवस्थाओं को पाने के लिए शील का पालन अनिवार्य है। बुद्ध का यह आष्टांगिक मार्ग ‘अत्त दीपो भव’ या ‘आत्मनिर्भर’ बनाने का तरीका है।
2. बुद्ध का धम्म प्रचार
बुद्ध का धम्म शील सदाचार का मार्ग है लेकिन सभी से शील सदाचार की अपेक्षा रखना यह व्यवहारिक नही है इसलिए बुद्ध धम्म प्रचारक भिखुओं को आदेश देते हैं, “चरत भीखूवे चाहरिकम समाजवादी हिताय समाजवादी सुखाय” अर्थात बुद्ध बहुजन और अल्पजन दो भागों में समाज का वर्गीकरण करते हुए भिखुओं को चारो दिशाओं में घूम घूमकर बहुसंख्यक लोगों को शील सदाचार के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करने का आदेश देते हैं । उनका मानना था कि जब बहुसंख्यक समुदाय का कल्याण हो जाएगा तब अल्पसंख्यक समुदाय के प्रति बहुसंख्यक समुदाय की भावना मैत्री प्रेम करुणा की ही रहनी चाहिए अर्थात सदाचारी और दुराचारी का वर्गीय विभाजन किए बगैर भवतु सब्ब मङ्गलं या दलितों पिछडो का उद्धार सम्भव नही है ।
3. बुद्ध का संघ निर्माण
बुद्ध ने भिक्षुओ और उपासकों को शील सदाचार के नियमों के साथ बांधकर संघठित रखने के लिए संघ का निर्माण किया। बुद्ध का संघ सदाचारी संघ था जिसमें संघ की दीक्षा देकर प्रवेश दिया जाता था और संघ के नियमों का उलंघन करने पर संघ से निष्काषित कर दिया जाता था । संक्षेप में कहें तो संघ बुद्ध के धम्म की यूनिवर्सिटी थी, बुद्ध इस यूनिवर्सिटी के संस्थापक थे । इस यूनिवर्सिटी ने पूरी दुनिया को सत्य अहिंसा प्रेम और समानता का पाठ पढ़ाया इसलिए बुद्ध को पूरी दुनिया विश्व गुरु मानती है।
आज दुनिया असत्य हिंसा नफरत और विषमता के मार्ग पर चलते हुए युद्व (विनाश) की ओर बढ़ती चली जा रही है । एक मात्र बुद्ध का ही मार्ग है जो सत्य अहिंसा प्रेम और समता का पाठ पढ़ाकर दुनिया में शांति स्थापित कर दुनिया को बचा सकता है ।
बुद्ध पूर्णिमा के पावन अवसर पर समस्त बल कर्मियों और उनके परिजनों को हार्दिक शुभकामनाएं । अहिंसा, शांति, प्रेम और करुणा से परिपूर्ण भगवान बुद्ध का जीवन हम सभी को मानव सेवा के लिए सदैव प्रेरित करता रहेगा ।
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